हम लोगों ने कितनी ही शादियां देखी है हर समाज और जाति में परम्परा के नाम पर अलग – अलग रिवाज़ होते हैं। जो हमारे लिए आम हैं लेकिन वहीं हमारे बीच ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें इन रिवाज़ों को निभाने की आज़ादी लेने में 300 साल लग गए।
शादी-ब्याह के मौके पर दूल्हे को घोड़ी चढ़ते देखना एक आम बात है। मगर अभी भी हमारे ही समाज में कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें आज भी घोड़ी चढ़ने का हक नहीं दिया जाता। इस बदलते दौर में जहां घोड़ी पर बैठना एक आम बात है। मगर लोग सदियों से इन रिवाज़ो को निभा रहे हैं, उन रिवाजों को निभाने में कई लोगों को 300 साल का समय लग गया।
बात करते हैं हरियाणा के एक छोटे से गांव गोविंदपुरा की जहां दूल्हे को घोड़ी चढ़ने में 300 साल लग गये। इसका कारण था सिर्फ जाति। जी हां हरियाणा के इस गांव में अनुसूचित जाति के लोग को घोड़ी पर नहीं चढ़ने दिया जाता था पर 300 साल बाद एक व्यक्ति ने इस परम्परा को तोड़ा।
दादरी रोड पर बसे गोविंदपुरा गांव में शुरुआत से ही दो जातियां हैं, राजपूत तथा और अनुसूचित जाति। गांव के सरपंच बीरसिंह का कहना है कि गांव के बसने के बाद से ही यह परंपरा चल रही थी कि अनुसूचित समाज के लोग अपनी शादी में घोड़ी नहीं चढ़ सकते लेकिन रविवार को इस परंपरा को तोड़ दिया गया और गांव के युवक विजय कुमार को घोड़ी चढ़ कर धूमधाम से बारात निकाली गई। इस दौरान गांव में पूरी तरह शांति रही और किसी ने इसका विरोध नहीं किया है।
गांव के सरपंच बीरसिंह राजपूत ने बताया कि तीन साल पहले गांव की पंचायत में फैसला किया था कि अब गांव में अनुसूचित समाज को घोड़ी चढ़ने से नहीं रोका जाएगा। लेकिन इस पुरानी परम्परा के डर से गांव में कोई आगे ही नहीं बढ़ा। तीन साल बाद विजय ने हिम्मत दिखाकर बीरसिंह से अपनी शादी में घोड़ी चढ़ने के संबंध में संपर्क किया। विजय की बात पर बीरसिंह तुरंत तैयार हो गए। जिसके बाद विजय को घोड़ी चढ़ाकर धूमधाम से बारात निकली।
विजय के समाज के लोग इस घुड़चढ़ी से बहुत खुश है। उनका कहना है कि अब जा कर उन्हें लग रहा है कि गांव में उनकी भी इज्जत है।आखिर क्यों खुश होना जायज है इस समाज के लोगों का
1. तमिलनाडु के सुबुलपुर ज़िले में सार्वजनिक श्मशान घाट पर नीची जाति के शख़्स के अंतिम संस्कार की अनुमति नहीं दी गई थी। जिसके बाद मजबूरी में पेट्रोल डाल कर शव का अंतिम संस्कार करना पड़ा था।
2. उस देश में इन लोगों का खुश होना जायज है जहां एक नवनिर्वाचित अनुसूचित जाति की महिला ग्राम मुखिया को गांव के दबंगो द्वारा हाथ पकड़ कर कुर्सी से खींचकर जमीन पर बैठा दिया जाता है। यह मामला उत्तर प्रदेश के महोबा जिले के एक गांव नाथूपुरा गांव का था। जहां नवनिर्वाचित ग्राम प्रधान सविता देवी अहिरवार गांव के पंचायत भवन में वर्चुअल मीटिंग में जुड़ी थीं। इसी दौरान गांव के कुछ दबंग आए और उनके साथ अभद्रतापूर्ण व्यवहार करने लगे। 10 से अधिक लोग पंचायत भवन पहुंचे तथा जाति सूचक शब्दों का प्रयोग करते हुए उनका हाथ पकड़कर कुर्सी से नीचे उतार दिया।
3. उस देश में इनका घोड़ी चढ़ने पर खुश होना जायज है जहां गुजरात से एक दलित व्यक्ति की शादी की बारात को रोकने के लिए उच्च जाति के लोग सड़क पर जाम लगा देते हैं। अरवल्ली जिले के दलित युवक की बारात को रोकने के लिए उच्च जाति के लोगों ने न सिर्फ उनकी बारात को रोका था। बल्कि रास्ते पर भजन और यज्ञ कर जाम लगा दिया था।