हमारे देश में अंतिम संस्कार के लिए रोजाना लकड़ियों को जलाया जाता है, जिससे पर्यावरण को भारी नुकशान पहुँचता है। लेकिन इसके लिए हमारे देश के एक किसान ने नया तरीका निकला है, जिसकी मदद से अब अंतिम संस्कार में बहुत ही कम लड़किया खर्च होती है। जानिए इस किसान की पहल को।
गुजरात, जूनागढ़ के रहने वाले अर्जुन बारहवीं पास किसान है। अर्जुन भाई पघडार के दिमाग में आज से कुछ 40 साल पहले इस बारे में विचार आया था। उनका सोचना था की यदि दाह संस्कार में कम से कम लकड़ी का इस्तेमाल करें तो रोज़ देश में कितनी लकड़ियां बचाई जा सकती हैं? इसके बाद उन्होंने इस तरह के प्रयोग को किया।
कैसे हुई शुरुआत
40 साल पहले उनके मामाजी की मृत्यु हो गई थी, तब वह भू उनके अंतिम संस्कार में गए थे। उन्होंने देखा की लगभग 400 किलो से ज्यादा लकड़ियों का इस्तेमाल किया गया। इसके बाद से उन्होंने लकड़ियों को बचने के लिए सोचना शुरू किया। इसके बाद उन्होंने 2015 में सोचा की शवदाह गृह को ममी के आकार का होना चाहिए, जिससे लकड़ी की खपत कम होगी। “एक दिन मैं दोनों हथेलियों को जोड़कर चुल्लू बनाकर नल से पानी पी रहा था, तभी दिमाग में यह आईडिया कौंधा कि शवदाह गृह को भी कुछ इसी तरह ममी के आकार का होना चाहिए।”
इस आईडिया को पूरा करने के लिए उन्हें पैसे की आवश्यकता थी। पैसे की कमी के बावजूद उन्होंने इस आईडिया पर आधारित प्रोटोटाइप तैयार करना शुरू किया और लगातार 2 साल तक इस तरिके पर काम करते रहे। 2017 में उन्होंने इसका मॉडल बनकर तैयार किया। सके बाद इस मॉडल का उपयोग जूनागढ़ के शवदाह गृह में किया गया। इसके बाद से अंतिम संस्कार में मात्र 70 से 100 किलो लकड़ी ही लगने लगी। उनका कहना है की यदि सभी जगह इस मॉडल का उपयोग किया जाते तो देश में रोज़ाना कम से कम 40 एकड़ जंगल बचाया जा सकता है।
कैसे काम करता है ‘स्वर्गारोहण’
इस मॉडल को उन्होंने स्वर्गारोहण’ नाम दिया। यह भट्टी वायु एवं अग्नि के संयोजन से काम करती है। एक हॉर्स पॉवर के ब्लोअर से आग लगने के बाद भट्टी में तेज हवा चलती है, जिससे लकडिया तेज आंच प्रदान करती है। जिससे तेजी से पूरी भट्टी की लकड़ियां एवं शव जलने लगता है। इसमें लकड़ी और शव को अलग रखा जाता है और जलाया जाता है। इसमें जाली लगी होती है। नीचे वाली जाली के ऊपर लकड़ी रखी जाती है, लकड़ी के ऊपर भी जाली होती है। उसके ऊपर शव रखने के लिए जाली लगायी गई हैI यह ज्यादा तापमान को बर्दाश्त करने में सक्षम है। भट्टी के अंदर की गर्मी 700 डिग्री सेल्सियस से 1000 डिग्री सेल्सियस तक हो जाती है। इस प्रकार शव कम लकड़ी में ही जल जाता है।
राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित हो चुके हैं अर्जुन भाई
पर्यावरण को बचने में इनका यह प्रयास सफल रहा है। 2010 में उन्होंने पहली बार फ्लाई ऐश से ईंट बनाने की मशीन बनाई थी, जिसके लिए उन्हें साल 2015 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा ग्रासरूट इनोवेटर अवार्ड से सम्मानित किया गया था। उनकी कोशिश हमेशा पर्यावरण को बचाने की होती है।