हम सबने अपने बड़ों से अक्सर यह सुना है कि व्यक्ति को अपने आज में जीना चाहिए। अतीत में क्या हम थे ?यह सब सोचकर जीवन नहीं बिताया जा सकता या भविष्य में क्या होने वाला है? इसको हम नहीं पहले से बता सकते। हम सिर्फ हमारी तरफ से यह कोशिश कर सकते हैं कि जो हम सपने देखते हैं उनको पूरा करने के लिए हम अपनी पूरी जान लगा दे।
आज हम आपको एक ऐसी लड़की की कहानी बताने जा रहें जिसका अतीत बहुत धुंधला रहा है, लेकिन उसने अपने वर्तमान में ऐसी मिसाल पेश की है। जिसके लिए चारों तरफ उसकी तारीफ़ हो रही है।
कैसे किया कमाठीपुरा की लड़की ने अमेरिका में नाम रोशन
यह कहानी है मुंबई के एक रेड लाइट एरिया (कमाठीपुरा) में रहने वाली श्वेता की, कमाठीपुरा एशिया का जाना माना रेडलाइट एरिया है। श्वेता का जन्म मुंबई के रेड लाइट एरिया में ही हुआ था। पर उसमें आगे बढ़ने की उमंग थी इसी आगे बढ़ने की उम्मीद और उमंग ने उसे अपने अतीत को भुलाने में मदद की। जिसके बारे में बहुत सारे सोचकर ही रह जाते हैं।
बता दें कि इस लड़की का जन्म एक ऐसे जगह पर हुआ था। जिसे नर्क कहा जाता है, लेकिन उसने उस नर्क के इलाके से उठकर अमेरिका के सबसे महंगे कॉलेज तक की उड़ान भरी। जिसकी इस उड़ान के बाद लाखों लोग उसे सलाम कर रहें हैं। आइए जानते हैं 18 साल की उम्र में 28 लाख की स्कॉलरशिप ले कर अमेरिका जाने वाली श्वेता के जीवन के बारे में…
अमेरिका के बहुत बड़े कॉलेज से की पढ़ाई
रेड लाइट एरिया में जन्मी श्वेता बस्ती में माहौल में ही पली बढ़ी है। श्वेता अपनी तीन बहनों में सबसे छोटी हैं। जहां जन्म लिया वह जगह तो बड़े सपने देखने के अनुकूल नहीं है लेकिन श्वेता के हौसलों की बुलंदी ने कुछ ऐसा कर दिखाया कि श्वेता ने अमेरिका के बहुत बड़े कॉलेज में एडमिशन लेकर पढ़ाई भी की।
बता दे की श्वेता का बचपन कमाठीपुरा के देहव्यापार के बीच गुज़रा। वे लगातार श्वेता को पढाई करने के लिए प्रेरित करती रहती थी। जिससे कि वह पढ़-लिखकर उस माहौल से निकल सके और कुछ बनकर उन्हें भी यहां से बाहर निकाल सके।
झेलना पड़ा यौन शोषण
मात्र नौ साल की उम्र में ही श्वेता को उसके एक करीबी की गलत हरकत सहनी पड़ी थी। तीन बार यौन शोषण का शिकार हो चुकी श्वेता को उसके रंग को लेकर भी चिढ़ाया जाता था। वो बताती हैं कि स्कूल में उन्हें बच्चे गोबर कहकर चिढ़ाते थे। लेकिन कुछ कर गुजरने की श्वेता की ललक ने विपरीत परिस्थितियों से लड़कर उसे अपनी राह पर पहुंचा ही दिया।लेकिन श्वेता को समय-समय पर यह एहसास जरूर होता था कि वह भले ही बहुत कुछ करना चाहती लेकिन उसे ना तो कोई मदद मिल रही और ना ही उसके आत्मविश्वास को मजबूती। इतना सब सहने के बाद वो इतना कमजोर महसूस करने लगी थी कि किसी प्रतियोगिता में भाग लेने से भी डरती थी।
एनजीओ जॉइन किया
जिन हालातों में श्वेता बड़ी हुई थी, उसकी वजह से वह खुद से ही नफरत करने लगी थी। साल 2012 में 16 वर्षीय श्वेता ने क्रांति नामक एक एनजीओ जॉइन किया। इस संस्था ने उसे खुद से प्यार करना सिखाया। श्वेता ने इस संस्था की मदद से सिर्फ खुद को ही नहीं, बल्कि अपने जैसी अन्य लड़कियों को भी मजबूती दी।
रेड लाइट एरिया से न्यूज़वीक पत्रिका में छपने का सफ़र
इन सब परेशानियों को झेलने में बाद श्वेता के जीवन मे वह पल आया। जब उसके सराहनीय प्रयासों की वजह से अमेरिकी मैगज़ीन न्यूज़वीक ने 2013 में उन्हें अपने अप्रैल अंक में 25 साल से कम उम्र की उन 25 महिलाओं की सूची में शामिल किया था जो समाज के लिए प्रेरणास्त्रोत बनी। इस सूची में पाकिस्तान की मलाला यूसुफज़ई का नाम भी था। यह लड़की यही नहीं रुकी, क्योंकि उसकी मंजिल तो कुछ और थी। ऐसे में इसके बाद श्वेता को वो मिला जिसके बारे में वह कभी सपने में सोचने की हिम्मत भी नहीं कर सकती थी। उस समय अमेरिका के दस सबसे महंगे कॉलेजों में से एक माने जाने वाले ‘बार्ड कॉलेज’ की चार साल स्नातक डिग्री की फीस लगभग 30 लाख रुपए थी। श्वेता को यहां पढ़ने के लिए 28 लाख की छात्रवृत्ति मिली थी।
ऐसे मिली श्वेता को छात्रवृत्ति
श्वेता लगातार इंटरनेट पर अमेरिकी विश्वविद्यालय के बारे में सर्च करती रहती थी। इसी दौरान उनकी बात बार्ड कॉलेज के एक पूर्व छात्र से हुई। वह छात्र श्वेता से इतना प्रभावित हुआ कि उसने बार्ड कॉलेज मे श्वेता के नाम की सिफारिश कर दी। कठिनाइयों से लड़ कर अपने सपने की ओर आगे बढ़ रही श्वेता की कहानी ने कॉलेज के एडमिशन अफसरों का दिल छू लिया। बाकी का काम न्यूज़वीक पत्रिका ने कर दिया। जिसमें श्वेता को 25 श्रेष्ठ महिलाओं में चुना गया था। इन्हीं कारणों से बार्ड कॉलेज ने खुशी खुशी श्वेता की छात्रवृत्ति को मंजूरी दे दी।