RRR Movie Review in Hindi: ‘बाहुबली’ फिल्म के डायरेक्टर सर एसएस राजामौली सिनेमा की स्क्रीन पर हमेशा ही “लार्जर दैन लाइफ” जैसे किरदारों की रचना करने के लिए जाने जाते है। उनकी हाल में एक फिल्म आरआरआर (RRR) सिनेमाघरो में 25 मार्च को रिलीज़ हो चुकी है। इसमें कोई शक की बात नही है की फिल्म की शुरुआत से अंत तक काफी अच्छा विसुअल अनुभव है। यदि आप ध्यान से इसके किरदार, सिनेमेटोग्राफी, इफेक्ट्स, विशाल सेट और सभी किरदारों के अद्भुत अभिनय को देखेगे तो मंत्रमुग्ध हो जाएगे। सर राजामौली की कल्पना काफी कमाल की है, फिल के सभी किरदार असल है लेकिन सभी परिस्तिथिया काल्पनिक है। निर्देशक राजामौली अपनी काल्पनिक सोच के अनुसार अल्लूरी सीतारामा राजू और कोमाराम भीम इन दोनों को महान क्रांतिकारी के रूप में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लोहा लेते बताया गया है। फिल्म में दोनों क्रांतिकारियों को इस तरह से बताया गया है की दोनों एक दुसरी से कभी ना मिले होते है परन्तु फिर भी दोनों इतिहास का एक मुख्य अंग प्रतीत होते है। सर राजामौली ने अपने देश को नही बल्कि कहानी को भी अछि तरह से धर्मनिरपेक्ष बताया है।
क्या है RRR की कहानी?
कहानी उस दौर की है भारत में अंग्रेजो का राज हुआ करता था। एक 10-12 की लड़की को भीम के काबिले से कुछ अंग्रेज उठा कर दिल्ली की और ले जाते है। इस बच्ची को अंग्रेजो की कैद से रिहा करवाने के लिए भीम दिल्ली पहुच जाता है। भीम के दिल्ली पहुचने की खबर अंग्रेजो तक पहुच जाती है। भीमा को धुंध कर पकड़ने की जिम्मेदारी राम ले लेता है, राम अंग्रेजो की सेना का भारतीय सिपाही है। ये दोनों एक दुसरे से बिलकुल अनजान रहते है। बाद में ये दोनों दोस्त बन जाते है। भेद खुलने के बाद क्या होता है? भीम बच्ची को छुड़ा पाएगा? भीमा को राम पकड़ लेगा? अंग्रेजो के लिए राम क्यों कम कर रहा है? धीरे-धीरे इन सवालो के जवाब सामने आने लगते है।
डायरेक्टर एस एस राजामौली की फिल्म आरआरआर में 6 बहुत ही ख़ास पल है। फिल्म में दर्शाए गए 6 ऐसे पल है जो की पूरी फिल्म में जान दाल देते है भीमा का एंट्री सीन, नदी से बचाने वाला सीन, नाचो-नाचो संगीत, प्री-इंटरवल ब्लॉक और अजय देवगन का सीन और सबसे आखिर में क्लाइमेक्स। फिल्म में बताई गयी कहानी के बारे में कुछ ज्यादा खाद नहीं लिखा जा सकता है लेकिन इतना कहा जा सकता है की उनकी कहानी को दर्शाने की क्षमता फिल्म में चार चाँद लगा देती है। फिल्म में बताये गए सभी कलाकारों ने अपना किरदार बखूभी निभाया हाई। उस फिल्म में विदेशी कलाकार है उन्होंने भी अपनी कलाकारी से भारतीय फेंस का दिल जीत लेता है।
फिल्म के आखिर में निर्देशक राजामौली हमें याद दिलाते हैं कैसे एक स्मार्ट फिल्ममेकर अपनी चतुराई से रामायण के हिस्से को आखिरी पार्ट में इस्तेमाल कर इस फिल्म को न सिर्फ और अद्भुत बना देते हैं साथ ही स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि भी पेश करते हैं। फिल्म के टेक्निशियन्स की बात करें तो केके सेंथिल कुमार की सिनेमेटोग्राफी, एमएम कीरावेनी के गाने और बैक ग्राउंड स्कोर कमाल है। वीएफएक्स भी काफी शानदार है। साथ ही राम चरण और जूनियर एनटीआर की हिंदी डबिंग के लिए भी तालियां बजनी चाहिए।
सिनेमा बनाने के मामले में एस एस राजमौली का अपना ही स्वप्नलोक है। हलाकि इस बार उनकी कहानी महिष्मती जैसी काल्पनिक नहीं है, इस बार धरती पर हुए द्रश्य जो की लगभग भाग 100 साल पुराना रचा हुआ बताया गया है। राजामौली ने विजयेन्द्र प्रसाद की कहानी पर स्क्रीनप्ले लिखा है। इस स्क्रीनप्ले को इस तरह से दिखाया गया है जिसमे कहानी के एब चुप जाते है और फिल्म केवल दौड़ती हुई नजर आ रही है। फिल्म में दिख्जाए गए उतार चादाव और ब्लॉकबस्टर द्रश्यो ने दर्शको को आकर्षित किया। फिल्म में एस एस राजामौली ने लॉजिक पर ज्यादा ध्यान ना देते हुए मनोरंजन का ध्यान रखा। उन्होंने इस बार ज्यादा मेहनत ना करते हुए भाषा और कॉस्टयूम का भी ध्यान नही दिया। फिल्म का बजट जितना भव्य बताया गया है उतनी भव्य नही है फिल्म।
गाने के मामले है कमजोर कड़ी
अगर तकनिकी तौर पे देखा जाए तो फिल्म काफी विशाल है। शुरू से आखिर तक राजामौली ने फिल्म पर अंकुश लगाये रखा है। फिल्म की चाल दौड़ती हुई बताई गयी है। फिल्म में किया गया कला निर्देशन, कंप्यूटर ग्राफिक्स और वीडियो इफेक्ट्स काफी जोरदार है और ध्यान खीचने वाला है। फिल्म में सब कुछ ठीक है लेकिन फिल्म सपने संगीत को लेकर थोड़ी पीछे है।